Saturday 28 October 2017

आदिशंकर व मैक्समूलर  ?
आदिशंकर व मैक्समूलर की अद्वितीय उपलब्धियों के संदर्भ में भारत के 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी का ध्यानाकर्षण करने की तात्कालिक जरूरत है। प्रधानमंत्री जी आदिशंकर व मैक्समूलर की अद्वितीय उपलब्धियों के फलितार्थ हिन्द के चतुर्मुख उत्थान में मौलिक सहायक की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जी कृपया आदिशंकर और मैक्समूलर के महत्व को हिन्द के राजनीतिक विश्लेषकों, सक्रिय राजनीतिज्ञों के संज्ञान में इन दो महानुभावों की उपलब्धियों पर चिंतन मनन करने के लिये प्रोत्साहित करें ताकि 
हिन्द आदिशंकर व मैक्समूलर की उपलब्धियों का लाभार्जन कर सके। 
आदिशंकर का अभियान हिन्द की पहली सांस्कृतिकता का भारतीय वाणियों में उपलब्ध साहित्य की विशिष्ट खोज की अपेक्षा रखता है।
शोधकर्त्ता पी.एन. राव ने आदिशंकर का काल निर्धारण केरल के कालड़ी में जन्मे आदिशंकर ने भारत यात्रा कब संपन्न की तथा वे कहां कहां गये ? जहां जहां पहुंचे उन सब स्थानों में उन्होंने क्या किया ? महाशय पी.एन. राव के मतानुसार आदिशंकर भगवान गौतम बुद्ध के उद्भव, उनके द्वारा समूचे हिन्द को बौद्धमतावलंबी बनाने के मात्र पचास वर्ष पश्चात याने आज से चार हजार चार सौ पचास वर्ष पूर्व आदिशंकर कालड़ी से निकले। उन्होंने अपनी माता को कावेरी स्नान कराते समय मां से सन्यस्त होने की आज्ञा चाही। माता भी बड़ी चतुर बहुश्रत थी। मां ने बेटे से कहा - वत्स, मुझे तुम्हें सन्यासी होने देने में कोई रूकावट नहीं मेरी केवल यही इच्छा है कि मैं विधवा हूँ तुम्हारे पिता दिवंगत होगये हैं। मेरी अंत्येष्टि क्रिया का वादा करते हो तो मैैं तुम्हें सन्यासी होने की अनुमति दे दूँगी। आदिशंकर ने मां की बात मान ली और वादा किया कि मां जब तुम दिवंगत होओगी तुम्हारी समस्त और्ध्वदैहिक क्रियाकांड विधिपूर्वक संपन्न करूँगा। मां का निधन हुआ तो कालड़ी के नंबूप्रिय ब्राह्मणों ने आदिशंकर से कहा - तुम सन्यासी हो, मां की और्ध्वदैहिक क्रियाकांड के अधिकारी नहीं हो। यह सही है कि तुमने मां से प्रतिज्ञा की है यदि तुम अपनी मां का और्ध्वदैहिक क्रियाकांड स्वयं करना चाहते हो तो नंबूदिरी तुम्हारा साथ नहीं देंगे। आदिशंकर ने अपने समदानियों की बात मान ली स्वयं ही सभी क्रियाकांड संपन्न किये। महाशय पी.एन. राव के मतानुसार यह घटना चार हजार चार सौ पचास वर्ष पूर्व घटी। तब समूचा हिन्द लिच्छिवि गणतंत्र के मुखिया शुद्धोदन के यशस्वी पुत्र गौतम बुद्ध ने समूचे भारत में बौद्ध पताका फहरा डाली थी। यहा तक कि मिथिला के यशस्वी मंडन मिश्र व उनकी भार्या भारती दोनों बौद्ध मतावलंबी थे। अपनी भारत दिग्विजय यात्रा में आदिशंकर मिथिला पहुंचे। मंडन मिश्र के सुग्गों ने उनका स्वागत करते हुए कहा - सन्यासी तुम्हारा स्वागत करता हूँ। आज मेरे स्वामी पंडित मंडन मिश्र अपने पिता श्री का श्राद्ध कर रहे हैं। सन्यासी श्राद्ध में वर्जित है इसलिये श्राद्ध संपन्न होने के पश्चात मेरे स्वामी मंडन मिश्र आपका स्वागत करेंगे। मंडन मिश्र आदिशंकर के मध्य जो शास्त्रार्थ हुआ आदिशंकर ने मंडन मिश्र से कहा - शास्त्रार्थ निर्णायिका मां भारती मिश्र होंगी। उनका निर्णय मुझे स्वीकार्य होगा। मंडन मिश्र की भार्या भारती मिश्र पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आगयी। उन्होंने सन्यासी शंकर और अपने पति मंडन मिश्र के मध्य संपन्न शास्त्रार्थ का विश्लेषण करते हुए आदिशंकर से कहा - सन्यासी आप विजयी हो। मेरे पति मंडन मिश्र शास्त्रार्थ में आपसे पराजित हैं परन्तु सन्यासी आपकी विजय यात्रा अभी अधूरी ही है। मंडन मिश्र गृहस्थी हैं और मैं उनकी अर्धांगिनी हूँ इसलिये आपको मुझसे भी शास्त्रार्थ करना होगा तथा मुझे भी शास्त्रार्थ में हराना होगा तभी आप पूर्ण रूप से विजयी कहलायेंगे। आदिशंकर को भारती ने कहा - मैं तो स्त्री हूँ केवल कामशास्त्र ही जानती हूँ। आप कामशास्त्र पर मुझसे शास्त्रार्थ करें। आदिशंकर ने भारती से कहा - मां एक सप्ताह की मोहलत दो। मैं आपसे एक सप्ताह के बाद कामशास्त्र पर शास्त्रार्थ करूँगा। कामशास्त्र का ज्ञानार्जन करने के लिये आदिशंकर ने महिष्मती (वर्तमान कर्णाटक के मैसुरू) के नरेश के शरीर में प्रवेश करने का उपक्रम किया तथा अपने शिष्यों को कहा कि जब तक मैं वापस न आऊँ तब तक मेरे शरीर की रक्षा करना। महिष्मती नरेश के शरीर में प्रवेश करने के उपरांत उन्होंने महिष्मती की रानी के साथ सप्ताहपर्यन्त कामाचरण संपन्न कर कामशास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। एक सप्ताह के पश्चात आदिशंकर ने पुनः अपने शरीर में प्रवेश किया व भारती मिश्र से कामशास्त्र पर शास्त्रार्थ कर उन्हें भी पराजित कर दिया। इस मां भारती मिश्र ने आदिशंकर से पूछा - सन्यासी बिना स्त्री सहवास के आपने कैसे यह पारंगति प्राप्त की ? आदिशंकर ने उत्तर दिया - मां भारती, मैंने इस शरीर से स्त्री सहवास कदापि नहीं किया है। मंडन मिश्र व भारती ने आदिशंकर का लोहा मान लिया और आदिशंकर केे अद्वैतवाद को स्वीकार कर समूचे हिन्द में अद्वैतवाद की पताका फहरा डाली। आदिशंकर ने आननफानन में भगवान गौतम बुद्ध को महाविष्णु का नवां अवतार घोषित कर समूचे हिन्द के पारंपरिक समाज को बौद्धावतार की खुशखबरी दे डाली। आदिशंकर ने ज्योंही भगवान गौतम बुद्ध को महाविष्णु का नवां अवतार घोषित किया समूचे हिन्द से बौद्ध धर्म लुप्त होकर सनातन अद्वैतवाद का स्थायी अनुयायी बन गया। यद्यपि रामानुजाचार्य के द्वैताद्वैत तथा माध्वाचार्य के विशिष्ट द्वैत का संकल्प तमिलनाडु के अय्यर व आयंगर समाजों तथा दक्षिण कर्णाटक में विशिष्ट द्वैती माध्वाचार्य का प्रभाव सीमित क्षेत्रों तक आज भी दीख रहा है। आदिशंकर के अद्वैतवाद की पताका का सामना ये दोनोें द्वैताद्वैत व विशिष्ट द्वैत नहीं कर पाये, भारत आज भी केवल आदिशंकर की विशिष्ट अद्वैतवादी जीवनशैली को विश्व भर में फैला रहा है। शिकागो की 1896 की धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने अद्वैतवाद की वैश्विक उपलब्धियों से यह साबित कर दिया कि हिन्द का अद्वैतवाद विश्व को नयी दिशाबोधक सामर्थ्य देने में सक्षम है। जब स्वामी विवेकानंद से पूछा गया कि हिन्दुस्तान तो जातिवादी मुल्क है स्वामी जी ने हिन्द के जातिवाद को हिन्दू धर्म की की मौलिक शक्ति बता कर दुनियां को यह बता दिया कि हिन्दुओं का जातिवाद कर्मयोग का प्रतीक है। हिन्दुओं की जातियां कर्म प्रधान हैं इसलिये समय की मांग है कि आदिशंकर ने अद्वैत के जरिये जो रिलीजियस क्रांति का उच्चार किया उससे विविध मजहबों में जो ज्ञानशलाका तत्व है उन्हें विश्व मानव हित के लिये एकीकृत किया जाये। 
आदिशंकर संबंधी जो साहित्य आदिशंकर की जन्मभूमि केरल की मलयाली भाषा सहित दक्षिण भारत की तमिल, तेलुगु, कन्नड़़ भाषाओं में उपलब्ध हैै उसका सटीक उपयोग करने का समय आगया है। भारत में संवत्सर पड़वा, गुडिपड़वा, उगादि, युगादि के तौर पर चांद्रवर्ष का पहला दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत्सर, परिवत्सर, अनुवत्सर, इडावत्सर के रूप में साठ संवत्सरों प्रत्येक संवत्सर में अहर्निश अहोरात्र 60 घड़ी का माना जाता है। संस्कृत में इसे घटी पला विपला तथा निमिष के तौर पर प्रतिष्ठित किया जाता है इसलिये आदिशंकर ने जो व्यवस्था चार हजार चार सौ पचास वर्ष पूर्व सुनिश्चित की उनका यह उपक्रम भगवान गौतम बुद्ध के शरीर त्याग के मात्र पचास वर्ष भीतर ही  सक्रिय होगया। महाशय पी.एन. राव ने जो अनुसंधान किया है वह भारत की भाषाओं में भी यत्र तत्र उपलब्ध है इसलिये साने गुरू जी की आंतर भारती शैली ही आदिशंकर संबंधी विभिन्न भारतीय भाषाओं और बोलियों में जो तत्व निहित है मंडन मिश्र आदिशंकर शास्त्रार्थ ने जो नवज्योति भारत को दी उसको हिन्द के लोगों ने किस प्रकार अपनाया इसलिये वर्तमान काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण जरूरत आदिशंकर की भारत यात्रा पथ का सुनिर्धारण करना  है ताकि हिन्द के मैकोलाइट अंग्रेजीदां भद्रलोक में जो ऐतिहासिक मतान्तरता है उसे पाटा जा सके और आदिशंकर कहां कहां गये किस स्थान पर उन्होंने क्या किया ? जहां तक उत्तराखंड का सवाल है आदिशंकर हिमालये तु केदारम् ज्योतिर्लिंगों में महत्वपूर्ण केदारनाथ धाम में आदिशंकर की साधना केदारनाथ के अलावा आदिशंकर बदरीनाथ भी पहुंचे। बदरीनाथ धाम आदिशंकर द्वारा स्थापित श्रंगेरी जगन्नाथपुरी, द्वारका, बदरीनाथ धाम में जो चतुर्भुज आदिशंकर ने स्थापित किया। बात अधूरी रह जायेगी यदि आदिशंकर के भारत प्रयाण पथ में दारूकावन (देवदार वृक्षों से आच्छादित जागेश्वर धाम) तथा वर्तमान पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट नामक स्थान में आदिशंकर ने कोलकाता की कालीबाड़ी की तरह विश्व प्रसिद्ध हाटकालिका मंदिर में भगवती काली का दिव्य स्थल स्थापित किया। इस तरह आदिशंकर ने हिमालय में केदारनाथ, बदरीनाथ तथा हाटकालिका में जो महत्वपूर्ण कार्य संपन्न किये उनका सटीक ब्यौरा जानने का समय आगया है ताकि हिन्द में वे लोग जो आदिशंकर के अस्तित्व को अस्वीकार नहीं कर पाते केवल आदिशंकर को पिछली शताब्दी का उद्भव मान कर अपनी जिज्ञासा प्रकट करते हैं उन्हें यह बताने का समय आगया है कि आदिशंकर की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि अद्वैत के सूत्र में पिरोने की है। तात्कालिक आवश्यकता यह है कि आदिशंकर - मंडन मिश्र शास्त्रार्थ प्रकरण को हिन्दुस्तान की आध्यात्मिक सत्ता का पहला सूत्र मान कर पी.एन. राव ने जो उद्घोष किया है उसको स्थायित्व देने का उपक्रम किया जाये। 
देवकीनंदन वासुदेव श्रीकृष्ण मथुरा-कंसथार-कंस का कारावास में आज से 5243 वर्ष पूर्व जन्मे, देवकीनंदन वासुदेव श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव हुआ। लिच्छिवि गणतंत्र के प्रमुख शाक्य शुद्धोदन के पुत्र के रूप में गौतम बुद्ध का जन्म श्रीकृष्ण के 125 वर्ष जीवित रहने के पश्चात लगभग 500 वर्ष पश्चात हुआ। इसलिये कृष्णावतार व बौद्धावतार में कालाचरण पांच सौ वर्ष के आसपास हैै। बुद्ध जन्म के अंतराल वाले पचास वर्षों में आदिशंकर ने अंगद का पांव खड़ा कर दिया इसलिये आदिशंकर व गौतम बुद्ध की जीवन शैली में पचास वर्ष से कम का समय है। यही कारण है कि आदिशंकर ने भगवान गौतम बुद्ध को महाविष्णु का अवतार घोषित कर भारत से बौद्ध धर्म को लगभग निष्कासित कर डाला। 
ऋग्वेद का निघंटु सहित
आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा छपना
मैक्समूलर द्वारा आक्सफोर्ड सहित के जरिये निघंटु सहित ऋग्वेद का प्रकाशन 
भगवद्गीता केे चौथे अध्याय के दूसरे श्लोक - 
स काले नेह महता योगो नष्टः परन्तप, स एवायम् मया तेद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः
 भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यम् हये तदुत्तमम्।
का प्रत्यक्ष उदाहरण है। 
          मैक्समूलर जर्मनभाषी थे कभी हिन्दुस्तान नहीं आये पर उन्हें निघंटु सहित वैदिक ज्ञान एक अद्भुत उपलब्धि है। मैक्समूलर जब युवा हुए उन्होंने बर्तानिया - युनाइटेड किंगडम आफ ग्रेट ब्रिटेन के अत्यंत महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय - आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी पहुंच कर ऋग्वेद का सम्यक् संपादन कर आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के माध्यम से ऋग्वेद का प्रकाशन आज से करीबन दो सौ वर्ष पहले संपन्न कर डाला। भगवद्गीता के श्लोक का उद्धरण इसलिये दिया गया है कि लुप्त ज्ञान भी अपने आप जाग्रत हो जाया करता हैै। मैक्समूलर कभी हिन्दुस्तान नहीं आये पर उन्होंने ऋग्वेद का सटीक संपादन यज्ञ संपन्न कर डाला। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के लिये भी ऋग्वेद का प्रकाशन एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी जब आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने मैक्समूलर प्रस्तुत निघंटु सहित ऋग्वेद का प्रकाशन संकल्प लिया। मैक्समूलर कभी भारत आये भी नहीं उन्हें यह ज्ञान वैसा ही अद्वितीय है जैसा गुरू सांदीपनि को गुरू दक्षिणा के रूप में गुरूरानी (गुरूपत्नी) की चाहत पर वासुदेव देवकीनंदन श्रीकृष्ण ने गुरू सांदीपनि के मृत पुत्र को यमलोक से लाकर ‘गुरू दक्षिणा’ के रूप में प्रस्तुत कर डाला। इस सचराचर विश्व में कुछ भी असंभव नहीं केवल चाहत चाहिये। मैक्समूलर को पूरा पूरा ऋग्वेद कंठस्थ था। भारत में कहा जाता है - ‘कंठस्थातु या विद्या’ अर्थात जो विद्या व्यक्ति को कंठस्थ हो वही लाभ देती है। जिस व्यक्ति की विद्या - ‘पुस्तकास्थातु या विद्या’ अर्थात जिस व्यक्ति की विद्या पुस्तकों में ही स्थित है अर्थात याद नहीं है वह अलाभप्रद या किसी काम की नहीं है जैसा कि कहा भी गया है - 
पुस्तकस्थातु या विद्या पर हस्ते गते धनम्, कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद् धनम्।
          मैक्समूलर की अद्वितीय मेधा ने आधुनिक संसार को ऋग्वेद उपलब्ध कर दिया। यह घटना बहुत पुरानी नहीं मात्र लगभग दो सौ वर्ष पूर्व की है जब मैक्समूलर ने ऋग्वेद का प्रस्तुतीकरण किया। ऋग्वेद का प्रकाशन आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने किया। मैक्समूलर ने निघंटु पूर्ण ऋग्वेद के प्रकाशित स्वरूप में स्वयं को मोक्षमूलः तथा आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को अक्षपत्तन विश्वविद्यालय नाम से पुकारा। ऋग्वेद प्रकाशन की प्रतिष्ठापूर्ण उपलब्धि का लाभार्जन आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को मिला। जानने की बात यह है कि आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने ऋग्वेद की कितनी प्रतियां प्रकाशित कीं ? आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने भारत की तत्कालीन ईस्ट इंडिया कंपनी बहादुर तथा ईस्ट इंडिया कंपनी पर बर्तानियां की मजबूत पकड़ रखने वाले ब्रिटिश पार्लमेंट व ब्रिटिश मोनार्क ने क्या ऋग्वेद की कुछ प्रतियां कंपनी बहादुर तथा हिन्द के जिन इलाकों में बर्तानी प्रभुत्व था उन बर्तानी शासकों ने ऋग्वेद प्रकाशन पर सुरूचिपूर्ण प्रतिक्रिया की ? वडोदरा के महाराज जिन्होंने डाक्टर भीमराव रामराव अंबेडकर को शैक्षिक क्षेत्र में प्रतिष्ठित कराया उन महाराज रूपाजीराव गायकवाड़ ने मैक्समूलर संपादित ऋग्वेद की प्रति आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से प्राप्त की होगी। महाराज सयाजीराव गायकवाड़ के अलावा क्या ग्वालियर के महादजी सिंधिया पुणे केे पेशवा ने भी ऋग्वेद की प्रतियां प्राप्त कीं ? महाराजाधिराज नैपाल, श्रीमान पात्रे महाराजा महिष्मती मैसूर, श्रीमान ५ महाराज देउबा, महाराज बहादुर वडोदरा, श्रीमान ५ महाराजा गिद्धौर, श्रीमान ५ महाराज रीवा, श्रीमान ५ महाराजा मीरस्टेट, श्रीमान ५ महाराजा आवान, श्रीमान राजगुरू नेपालगढ़, श्रीमान ५ महाराजा साहब टेहरी गढ़वाल, श्रीमान ५ महाराजा जोधपुर, श्रीमान ५ राजा बहादुर अमान, होम मेंबर कौंसिल आफ स्टेट जयपुर श्रीमती राजमाता साहिबा मझोली राजपंडित बुलाकी राम भरतपुर, श्रीमती ईश्वरी दत्त जी सुपौल पटना, मंत्री ब्राह्मण महासभा ममुआ कैमूर, श्रीमान हरिनंदन मिश्र कानपुर, ज्योतिर्विद पंडित बलदेव चतुर्वेदी जौनपुर, काशी नरेश महाराज विभूति नारायण सहित जिन महानुभावों ने अक्षपत्तन विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित मोक्षमूलः संपादित ऋग्वेद की प्रतियां प्राप्त की हों। आज भारत में आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित ऋग्वेद की कितनी प्रतियां कहां कहां उपलब्ध हैं ? क्या नेशनल आर्काइव आफ इंडिया में ऋग्वेद की प्रतियां एक या अनेक उपलब्ध हैं ? भारत सरकार उसके लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी महाशय को हिन्द के उन सांसदों तथा विधायकों जिन्हें पश्चिमी सभ्यता लामेकर्स कहती है उनमें जो लोग वैदिक संस्कृत से अवगत हैं उन्हें ऋग्वेद की मैक्समूलर संपादित तथा आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रकाशित प्रति उपलब्ध कराना इसलिये जरूरी है ताकि हिन्द के लामेकर्स में एक नयी ज्योति का उदय हो। जिस महापुरूष मैक्समूलर ने यह सौगात हिन्दुस्तान को दी है उनकी वैदिक जिज्ञासा को हिन्द के लामेकर्स समझ सकें। 
          आदिशंकर और मैक्समूलर ने जो महत्वपूर्ण देन हिन्दुस्तान को उपलब्ध करायी है उसे आधुनिक हिन्द के लोकतंत्रीय पद्धति से विचार पार्थक्य के बावजूद हिन्द को वह ध्रुवपद मिल सकता है जिसे राजा उत्तानपाद केे यशस्वी पुत्र ध्रुव ने स्वयं को विश्व प्रतिष्ठित - पोलर स्टार के रूप में प्रतिष्ठित कर डाला। ऋग्वेद हिन्द के घर घर पहुंच कर वैदिकी श्रद्धा का विस्तार हो और हिन्दुस्तान वह वैश्वेदेव बन सके जिसके निर्माण में मैक्समूलर की अद्वितीय मेधा ने चमत्कारिक सुकृत्य संपन्न कर डाला। भारत सरकार यह पता लगाने का भगीरथ प्रयास करती रहे कि हिन्द के एक अरब सैंतीस करोड़ लोग जो हिन्द के शहरों व गांवों केे लगभग सत्ताईस करोड़ परिवारों को ऋग्वेद का प्रकाश शनैः शनैः पहुुंचाया जा सके और ऋग्वेद की महत्ता से हर हिन्दुस्तानी वाकिफ हो सके। 
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